एंबेसडर कार की कहानी | एंबेसडर क्यों बंद हुई
एंबेसडर कार
हिंदुस्तान मोटर्स के मालिक
एंबेसडर कार की कहानी
मेक इन इंडिया
इंडियन रोड का राजा
एंबेसडर कार के मॉडल
बेस्ट टैक्सी का किताब
एंबेसडर कार की कीमत
एंबेसडर ने दिया हिंदुस्तान को पहला कार प्लांट
एंबेसडर क्यों बंद हुई
पहली स्वदेशी कार का सौदा
वीवीआईपी लोगों की पहली पसंद एंबेसडर कार
एंबेसडर कार
दुनिया में किसी चीज के बदलाव में समय का बड़ा योगदान रहता है। वाहनों की दुनिया में कई कारें आई और सब ने अपनी जगह बनाए और इन सब में सबसे खास थी एंबेस्डर कार। इसका निर्माण हिंदुस्तान मोटर्स द्वारा किया गया। एंबेसडर कार का इतिहास आजादी से पुराना है । हिंदुस्तान एम्बेसडर अपने टाइम की सबसे लोकप्रिय कार थी। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुछ लोगों ने इसे मॉडिफाइड करा कर अपने घर के गिराज में आज भी संभाल कर रखा हुआ है । सिर्फ 14000 की इस कार ने अपने समय मैं धूम मचा राखी थी । वीवीआईपी लोगों से लेकर टैक्सी तक में इस गाड़ी ने अपनी जगह बना राखी थी। लाल, नीली, पीली बत्ती लगी एंबेसडर कार जिस की सवारी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री जैसे वीवीआइपी लोग होते थे।
हिंदुस्तान मोटर्स के मालिक
बी. एम. बिरला हिंदुस्तान मोटर्स के संस्थापक है।
एंबेसडर कार की कहानी
1958 में बनी भारत की पहली स्वदेशी कार जिसका निर्माण भारत में ही हुआ और यह कार हिंदुस्तान मोटर्स द्वारा बनाई गई। साल 1942 जब राजस्थान के मारवाड़ी कारोबारी जेडी बिरला, घनश्याम बिरला और उनके भाई बी.एम. बिरला ने हिंदुस्तान मोटर्स के नाम से कंपनी शुरू की। समय था 1942 का जब भारत के पास ज्यादा टेक्निक नहीं थी। बी.एम. बिरला ने अंग्रेजी कंपनी मॉरिस मोटर्स के साथ साझेदारी कर ली और उन्होंने अपना पहला कारखाना गुजरात के ओखा में खोला। कारखाने में कल पुर्जों को जोड़ा मिलाया जाता था इस तरह कार बनती थी। यह कलपुर्जे समुद्र के रास्ते गुजरात तट पर आते थे ओखा में ही बंदरगाह होने के कारण सामान को लाने ले जाने में समय और पैसे दोनों की बचत होती थी। दूसरे विश्व युद्ध के कारण यह सिलसिला ज्यादा नहीं चल पाया। आजादी के 5 वर्ष बाद बिरला ने अपना नया कारखाना कोलकाता से 10 किलोमीटर दूर उत्तरपाड़ा में खोला। बिरला ने मोरिस मोटर से फिर साझेदारी करी पर अब कार के कलपुर्जे जोड़े मिलाए नहीं जाते थे बल्कि यह पूरी कार ही यही बनती थी।
मेक इन इंडिया
एंबेसडर कार को देश का स्टेटस सिंबल माना जाता था। एंबेस्डर कार अब भारत में ही बनने लगी थी। एंबेसडर कार यूके की कंपनी मॉरिस ऑक्सफोर्ड तीनो से प्रभावित थी। मॉरिस अपनी इस कार को लैंड मास्टर के नाम से बाजार में लेकर आए। हिंदुस्तान मोटर्स ने कुछ सुधार और परिवर्तन के साथ साल 1958 मैं इसे एंबेसडर नाम से मार्केट में लेकर आए। एंबेसडर भारत की सबसे लंबे समय तक प्रोडक्शन वाली कार भी रही। 1958 से 2014 तक इसका प्रोडक्शन हुआ। 2014 में इसका निर्माण बंद कर दिया गया।
इंडियन रोड का राजा
60 और 70 के दशक में एंबेसडर कार का ही राज चल रहा था। एंबेसडर भारत की बनी पहली डीजल कार भी थी। हिंदुस्तान की सड़कों पर उतरते ही यह कार ऐसी दौड़ लगाने लगी बनाने वालों ने भी नहीं सोचा था। इसकी बनावट और कंफर्टेबल राइट के लिए इसे " भारतीय सड़कों का राजा" (किंग ऑफ इंडियन रोड) भी कहा जाता था।
एंबेसडर कार के मॉडल
हिंदुस्तान -10, हिंदुस्तान -14, मार्च 1, मार्च 2, मार्च 3, मार्च 4, एंबेस्डर नोवा, एंबेस्डर 1800, आईएस जेड, और लेटेस्ट वर्जन में (1992 से 2011) तक क्लासिक, ( 2003 से 2013 ) तक ग्रैंड, (2004 से 2007तक) एविगो, (2013 से 2014 तक ) इनकोर आदि।
बेस्ट टैक्सी का किताब
आरामदायक होने के कारण इसका टैक्सी में भी खूब उपयोग हुआ। एंबेसडर कार टैक्सी के रूप में हर छोटे-बड़े शहरों में चलती हुई दिखाई दे रही थी। इसकी इस प्रसिद्धि के कारण ही 2013 में ग्लोबल आटोमोटिव प्रोग्राम टॉप गियर द्वारा हिंदुस्तान एंबेस्डर को दुनिया की बेस्ट टैक्सी के खिताब से भी नवाजा गया।
एंबेसडर कार की कीमत
1958 में जब एंबेसडर कार मार्केट में आई तब इसकी कीमत मात्र 14000 थी। 2014 तक आते-आते एंबेसडर कार की कीमत 22 लाख थी।
एंबेसडर ने दिया हिंदुस्तान को पहला कार प्लांट
जापान में टोयोटा कंपनी कार प्लांट था। अब हिंदुस्तान मोटर्स ने भी हिंदुस्तान को अपना पहला कार प्लांट दिया और पूरे एशिया में कार प्लांट का दूसरे नंबर का दर्जा मिला। हिंदुस्तान मोटर्स के पास उत्तरपारा में 275 एकड़ का लैंड एरिया है। जिसमें 90 एकड़ में यह प्लांट ही शामिल है
एंबेसडर क्यों बंद हुई
60 से 70 तक शतक एंबेसडर कार का ही राज रहा। आंकड़ों के अनुसार 60 से 70 तक के दशक में हिंदुस्तान मोटर्स 24000 एंबेसडर कार बे जती थी। बाजार में अंबेडकर का ही बोलबाला था। फिर 80 के दशक में आई मारुति कार। मारुति कंपनी ने जापान की सुजुकी मोटर्स के साथ मिलकर 800 सीसी की सस्ती कार बाजार में उतार दी। मारुति 800 की इस छोटी फैमिली कार ने बाजार में एंबेस्डर कार के रुतबे को थोड़ा कम कर दिया। लोगों का रुझान मारुति 800 की तरफ होने लगा क्योंकि वह दाम में एंबेसडर के मुकाबले काफी कम थी। 90 का दशक आते-आते और विदेशी कंपनियां हुंडई, टोयोटा, होंडा भी भारतीय कार बाजार में आई अब लोगों के पास काफी विकल्प हो गए थे। ऑटो सेक्टर में हर कार नई टेक्नोलॉजी के साथ आ रही थी पर एंबेस्डर इनके कदम के साथ कदम नहीं मिला पाए। एंबेसडर कार का बाजार गिरता चला गया। कभी साल में 25000 बिकने वाली कार और 2014 में 2200 कारी बेच पाई। गिरते ग्राफ को बढ़ते कर्ज के कारण अंततः इस कार को 2014 में बंद कर दिया गया।
पहली स्वदेशी कार का सौदा
हिंदुस्तान मोटर्स ने फरवरी 2017 मैं फ्रांस की कंपनी "Peugeot" को एंबेसडर से जुड़े तमाम अधिकार ₹80 करोड़ में बेच दिए। और यह सौदा उसे अपने घटते कारोबार के कारण करना पड़ा।
वीवीआईपी लोगों की पहली पसंद एंबेसडर कार
एंबेसडर कार भारतीय नेता वअफसरों की पहली पसंद हुआ करती थी। लाल बत्ती, पीली बत्ती एंबेसडर में चमचमाती थी। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, बड़े अफसर जैसे खास लोग जब इस कार की सवारी करते थे तो यह कार भी खास हो जाती थी। उस दौर में जब अंबेडकर कारों का काफिला निकलता था तो समझ लेते थे कि कोई वीवीआइपी का काफिला निकल रहा है। काली रंग की एंबेसडर कार सेना के अधिकारियों के पास होती थी। 2014 में प्रोडक्शन बंद होने से पहले 16 फ़ीसदी यूनिट कारें भारतीय सरकार ने ही खरीद ली थी। भारत के ही छोटे शहरों व कस्बों में सरकारी अधिकारी एम्बेसडर कार का सफर करते दिख जाते हैं। इस कार में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेई व इंद्र कुमार गुजराल ने भी इसकी सवारी का लुफ्त उठाया है । पर बाद में अटल बिहारी वाजपेई के दौरान सुरक्षा कारणों के कारण अंबेडकर एम्बेसडर कार की जगह अन्य गाड़ियां ने ले ली थी।
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