Hmt की घड़ी में सोने का बिस्किट लगा होता था | एचएमटी कंपनी कब बंद हुई

 Hmt घड़ियां



  • Hmt घड़ियां

  • Hmt की शुरुआत

  • Hmt के मॉडल्स

  • Hmt घड़ी के साथ प्रतिस्पर्धा

  • सोने की बिस्किट लगी घड़ी

  • गांधी घड़ी

  • आर्मी कैंटीन में भी इसका इंतजार

  • Hmt ट्रैक्टर

  • Hmt घड़ी बंद होने के कारण

  • 2016  में भारत सरकार द्वारा इस कंपनी को ताला



Hmt घड़ियां


Hmt की घड़ियां भारत में काफी फेमस थी । Hmt की कहानी तब शुरू होती है जब घड़ी खरीदी नहीं कमाई जाती थी। Hmt की घड़ी हाथ में पहनना या अपने सूट की जेब में रखना शान की बात मानी जाती थी।

  • विवाह के मौके पर वर-वधू को उपहार में, 

  • परीक्षा में फर्स्ट डिवीजन आने पर, 

  • कुछ लोगों को अपने बड़ों से आशीर्वाद के रूप में मिलती थी, 


Hmt की घड़ी पहनना स्टेटस सिंबल माना जाता था। लेकिन वक्त की रफ्तार के साथ Hmt नहीं चल पाई और एक समय ऐसा आया वह बंद हो गई ।


Hmt - की फुल फॉर्म:-

(Hmt) - हिंदुस्तान मशीन टूल्स

Hmt के मालिक:-

Hmt किसी व्यक्ति की कंपनी नहीं है
Hmt को भारत सरकार द्वारा 1953 में शुरू किया गया । शुरुआत में कंपनी मशीन के टूल्स बनाती थी।


Hmt की शुरुआत

Hmt की घड़ियां भारत में काफी फेमस थी। Hmt शुरू से घड़ियां नहीं बना रही थी। घड़ी के अलावा ट्रैक्टर्स, प्रिंटिंग मशीन, मेटल फॉर्मिंग प्रेस, डाई कास्टिंग ,प्लास्टिक प्रोसेसिंग, मशीन इंडस्ट्रियल, मशीन और टूल्स बनाती है पर मुख्य प्रोडक्टस ट्रैक्टर और घड़ी थी।


साल 1961 में भारत सरकार ने जापान की सिटीजन वॉच कंपनी के साथ मिलकर बेंगलुरु में एक कंपनी स्थापित की ताकि देश में ही घड़ियों का निर्माण हो सके। इस कंपनी द्वारा पेश की गई पहली घड़ी जनता घड़ी थी। जो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के द्वारा लांच की गई । यहां फैक्ट्री में रोजाना 3.6 लाख Hmt घड़ियां बन रही थी। Hmt ने अपने कामकाज के दौर में 11 करोड़ से अधिक घड़ियां बनाई । उस वक्त भारत में Hmt के 3500 मॉडल थे। Hmt ने जवाहर नाम से एक रिस्ट वॉच लांच की। Hmt के इतने अधिक मॉडल आए कि लोगों को शोरूम से अपने पसंद का  मॉडल निकलवाने के लिए घंटों लग जाते थे।


Hmt के मॉडल्स

Hmt की पॉपुलर मॉडल Hmt सोनाटा, कोहिनूर ,पायलट , सोना आदि है।


Hmt घड़ी के साथ प्रतिस्पर्धा

1961 में इस कंपनी की शुरुआत हुई थी 1970 से 1980 के बीच में कंपनी सफलता की सीढ़ियां चढ़ रही थी । घड़ियों की मार्केट में Hmt कंपनी का ही बोलबाला था। लेकिन 80 के दशक में कंपनी के लिए प्रतिस्पर्धा का दौर आया । जब टाटा समूह ने टाइटन कंपनी की शुरुआत की । 90 का दशक आते-आते Hmt को पुराने दौर की घड़ी कहा जाने लगा । लेकिन फिर भी लोगों का विश्वास इतना गहरा था वो अभी इसके दीवाने थे।

सोने की बिस्किट लगी घड़ी

रानी बाग इकाई मे G10 नाम से सोने का बिस्किट लगी घड़ी भी बनाई गई। घड़ी की खासियत यह थी कि सुई के नीचे छोटा सा सोने का बिस्किट लगा होता था। इसकी कीमत उस समय लगभग ₹11000 थी ।


गांधी घड़ी

सूट में घड़ी रखना भी एक फैशन था । इसको पूरा क्या Hmt की गांधी घड़ी ने l सूट की जेब में रखे गांधी घड़ी और उससे बाहर लटकती चेन यह भी एक स्टाइल रहा था । रानी बाग में सालाना 500 गांधी घड़ी बनती थी । जिसमें 200 मैकेनिकल और 300 क्वार्टर शामिल थे । मैकेनिकल  ₹1450 और क्वार्टर ₹900 तक की थी। गांधी घड़ी का क्रेज सीनियर में ज्यादा था।


आर्मी कैंटीन में भी इसका इंतजार

पूरे देश से Hmt को 6 लाख घड़ियों का सालाना आर्डर मिलता था । Hmt घड़ियों के लिए सेना की कैंटीन में भी लोगों को एक लंबा इंतजार करना पड़ता था । Hmt घड़ी की सप्लाई के लिए करीब महीना भर लग जाता था । लेकिन तब भी लोगों को इसका बेसब्री से इंतजार रहता था ।


Hmt ट्रैक्टर

यूरोप की एक बड़ी ट्रैक्टर निर्माता कंपनी zetor थे । Hmt कंपनी ने उसके साथ समझौता करके Hmt zetor नाम से ट्रैक्टर बेचना शुरू किया । पर 1990 में यह समझौता खत्म हो गया और zetor कंपनी से अलग होने के बाद Hmt का काफी आर्थिक नुकसान हुआ ।  फिर सरकार ने Hmt ट्रैक्टर की स्थापना की और कई सारे मॉडल बाजार में उतारे । कुछ सालों तक कंपनी का कारोबार अच्छा चला । लेकिन धीरे-धीरे उसे नुकसान होने लगा । जिसका असर कंपनी पर पड़ा और कंपनी को अपना ट्रैक्टर बंद करना पड़ा । फेमस पंजाबी सिंगर सिद्दू मूसे वाला भी Hmt 5911 ट्रैक्टर के शौकीन थे।


Hmt घड़ी बंद होने के कारण

Hmt कंपनी भारत में काफी सारे प्रोडक्ट बनाती थी  इसमें ट्रैक्टर और घड़ियां प्रमुख थे ।
zetor कंपनी से अलग होने के बाद Hmt का काफी आर्थिक नुकसान हुआ था । दूसरी तरफ  सन 1995 में टाइटन को घड़ियां बनाने का लाइसेंस मिला । लोगों का भी रुझान Hmt की तरफ से कम होकर टाइटन घड़ी की तरफ बढ़ने लगा । सन 1999 के बाद देश का आर्थिक उदारीकरण जोर पकड़ने लगा । जिससे कंपनी को काफी नुकसान हुआ । इनकी बिक्री कम होती गई और घाटा बढ़ता गया । बेंगलुरु स्थिति यह कंपनी सरकारी संस्थान होने के कारण, ना तो विदेशी कंपनी और ना ही प्राइवेट कंपनीयों का मुकाबला कर पाई । इसको फैसले लेने में विलंब होने लगा और नए मॉडल  लाने में भी असमर्थ होने लगी । साल 2012 से 13 के बीच इस कंपनी का सालाना कारोबार 242 करोड़ रु से ज्यादा था । लेकिन कर्ज़ और घाटे के चलते घड़ियों को बंद करने का फैसला लेना पड़ा ।

अंततः  2016  में भारत सरकार द्वारा इस कंपनी को ताला लगा दिया गया ।



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

लखानी के दो मालिक | फरीदाबाद की लखानी का इतिहास

लूलू मॉल का मालिक कौन है, लूलू मॉल कहाँ है और लूलू मॉल का मतलब क्या है | what is meaning of lulu mall, where is lulu mall located and who is lulu mall owner

क्या पैराशूट तेल को खाने में उपयोग कर सकते हैं | क्या पैराशूट हेयर ऑयल नहीं है ?